मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी। आप अपनी दाईं ओर "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ…

मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी। आप अपनी दाईं ओर "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ" और बाईं ओर "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ" कहकर सलाम फेरते थे।

वाइल बिन हुज्र रज़ियल्लाहु अनहु का वर्णन है, वह कहते हैं : मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी। आप अपनी दाईं ओर "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ" और बाईं ओर "السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ" कहकर सलाम फेरते थे।

[ह़सन] [इसे अबू दाऊद ने रिवायत किया है।]

الشرح

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब अपनी नमाज़ से निकलना चाहते थे, तो दाएँ और बाएँ सलाम फेरते थे। सलाम फेरने का तरीक़ा यह था कि पहले अपने चेहरे को दाईं जानिब फेरते हुए "السلام عليكم ورحمة الله وبركاته" कहते और उसके बाद बाईं जानिब फेरते हुए "السلام عليكم ورحمة الله" कहते।

فوائد الحديث

नमाज़ में दो सलाम हैं। सलाम फेरना नमाज़ का एक स्तंभ है।

कभी-कभी "وبركاته" बढ़ा लेना मुसतहब है। क्योंकि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस शब्द का प्रयोग हमेशा नहीं करते थे।

नमाज़ में दोनों सलामों का उच्चारण एक स्तंभ एवं अनिवार्य कार्य है। लेकिन सलाम का उच्चारण करते हुए मुँह फेरना केवल मुसतहब है।

"السلام عليكم ورحمة الله" मुँह फेरते समय कहना चाहिए। न उससे पहले और न उसके बाद।

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नमाज़ का तरीक़ा