नमाज़ के अज़कार

नमाज़ के अज़कार

1- अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर रज़ियल्लाहु अनहुमा प्रत्येक नमाज़ का सलाम फेरने के बाद कहा करते थे : " لا إله إلا الله وحده لا شريكَ له، له الملك وله الحمد وهو على كل شيءٍ قديرٌ، لا حولَ ولا قوةَ إلا بالله، لا إله إلا الله، ولا نعبد إلا إيَّاه، له النِّعمة وله الفضل، وله الثَّناء الحَسَن، لا إله إلا الله مخلصين له الدِّين ولو كَرِه الكافرون" (अल्लाह के अतिरिक्ति कोई सच्चा पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझी नहीं है। उसी की बादशाहत है और उसी की सभी प्रकार की उच्च कोटी की प्रशंसा है और वह हर चीज़ में सक्षम है। अल्लाह के प्रदान किए हुए सुयोग के बिना न किसी के पास गुनाह से बचने की क्षमता है और न नेकी का काम करने का सामर्थ्य। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा उपास्य नहीं है। हम केवल उसी की उपासना करते हैं। उसी की सब नेमतें हैं और उसी का सब पर उपकार है। उसी की समस्त अच्छी प्रशंसाएं हैं। अल्लाह के अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं है। हम उसी के लिए धर्म को खालिस व शुद्ध करते हैं, चाहे यह बात काफिरों को नागवार लगती हो।) उन्होंने आगे कहा : @अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम प्रत्येक नमाज़ के बाद इन्हीं शब्दों के द्वारा तहलील (अल्लाह का गुणगान) करते थे।

3- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब नमाज़ समाप्त करते, तो तीन बार अल्लाह से क्षमा माँगते और यह दुआ पढ़ते : "@ऐ अल्लाह! तू ही शांति वाला है और तेरी ओर से ही शांति है। तू बरकत वाला है ऐ महानता और सम्मान वाले*!" वलीद कहते हैं : मैंने औज़ाई से कहा : क्षमा कैसे माँगी जाए? उन्होंने उत्तर दिया : तुम बस इतना कहो : मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ, मैं अल्लाह से क्षमा माँगता हूँ।

4- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इन शब्दों द्वारा दुआ करते थे : "@ऐ अल्लाह! मैं तेरी शरण माँगता हूँ क़ब्र की यातना से, जहन्नम की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से*।" और मुस्लिम की एक रिवायत में है : "जब तुममें से कोई तशह्हुद पढ़ चुके, तो चार चीज़ों से अल्लाह की शरण माँगे : जहन्नम की यातना से, क़ब्र की यातना से, जीवन और मृत्यु के फ़ितने से और मसीह-ए-दज्जाल के फ़ितने से।"

15- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे* : "لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِّ مِنْكَ الْجَدُّ" (अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई साझेदार नहीं है। उसी का राज्य तथा उसी की प्रशंसा है। वह हर काम का सामर्थ्य रखता है। ऐ अल्लाह! तू जो कुछ दे, उसे कोई रोकने वाला नहीं और जो रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं। किसी धनवान का धन तेरे विरुद्ध उसके कुछ काम नहीं आ सकता।)