ज़िक्र की फ़ज़ीलतें

ज़िक्र की फ़ज़ीलतें

3- “जिसने दस बार 'ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़दहु ला शरीका लहु, लहुल-मुल्कु व लहुल-हम्दु, व हुवा अला कुल्लि शैइन क़दीर' (अर्थात, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, पूरा राज्य उसी का है और सब प्रशंसा उसी की है और उसके पास हर चीज़ का सामर्थ्य है।) कहा*, वह उस व्यक्ति के समान है, जिसने इसमाईल (अलैहिस्सलाम) की संतान में से चार दासों को मुक्त किया।”

5- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने साथियों की एक सभा में गए और फरमाया : "तुम लोग क्यों बैठे हुए हो?" उन लोगों ने कहा : हम लोग इसलिए बैठे हैं, ताकि अल्लाह को याद करें और इस बात पर उसकी प्रशंसा करें कि उसने हमें इस्लाम का रास्ता दिखाया और इस्लाम जैसा धर्म प्रदान किया। आपने कहा : "अल्लाह की क़सम तुम लोग इसी के लिए बैठे हो?" उन लोगों ने कहा : अल्लाह की क़सम हम इसी लिए बैठे हैं। आपने फरमाया: @"मैं तुमसे क़सम इसलिए नहीं ले रहा हूँ कि तुमपर कोई आरोप लगाना चाहता हूँ। दरअसल बात यह है कि जिबरील अलैहिस्सलाम मेरे पास आए और बताया कि सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह फ़रिश्तों के निकट तुम लोगों पर गर्व कर रहा है।"

6- "क्या मैं तुम्हें तुम्हारा सबसे उत्तम कार्य न बताऊँ, जो तुम्हारे रब के निकट सबसे ज़्यादा सराहनीय, तुम्हारे दरजे को सबसे ऊँचा करने वाला*, तुम्हारे लिए सोना एवं चाँदी दान करने से बेहतर तथा इस बात से भी बेहतर है कि तुम अपने शत्रु से भिड़ जाओ और तुम उनकी गर्दन मार दो और वह तुम्हारी गर्दन मार दें?" सहाबा ने कहा : अवश्य ऐ अल्लाह के रसूल! तो फ़रमाया : "उच्च एवं महानअल्लाह का ज़िक्र करना।"

7- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का के रास्ते में चल रहे थे कि जुमदान नामी एक पर्वत के पास से गुज़रे। अतः फ़रमाया : "चलते रहो, यह जुमदान है। @अतुल्य विशेषता वाले लोग आगे हो गए।"* सहाबा ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह अतुल्य विशेषता वाले लोग कौन हैं? फ़रमाया : "अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करने वाले पुरुष और अल्लाह को बहुत-ज़्यादा याद करने वाली स्त्रियाँ।"

18- "जब तुम मुअज़्ज़िन को अज़ान देते हुए सुनो, तो उसी तरह के शब्द कहो, जो मुअज़्ज़िन कहता है। फिर मुझपर दरूद भेजो*। क्योंकि जिसने मुझपर एक बार दरूद भेजा, अल्लाह फ़रिश्तों के सामने दस बार उसकी तारीफ़ करेगा। फिर मेरे लिए वसीला माँगो। दरअसल वसीला जन्नत का एक स्थान है, जो अल्लाह के बंदों में से केवल एक बंदे को शोभा देगा और मुझे आशा है कि वह बंदा मैं ही रहूँगा। अतः जिसने मेरे लिए वसीला माँगा, उसे मेरी सिफ़ारिश प्राप्त होगी।"

19- वह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और कहने लगे : ऐ अल्लाह के रसूल! शैतान मेरे, मेरी नमाज़ तथा मेरी तिलावत के बीच रुकावट बनकर खड़ा हो जाता है। मुझे उलझाने के प्रयास करता है। यह सुन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@यह एक शैतान है, जिसे ख़िंज़िब कहा जाता है। जब तुम्हें उसके व्यवधान डालने का आभास हो, तो उससे अल्लाह की शरण माँगो और तीन बार अपने बाएँ ओर थुत्कारो*।" उनका कहना है कि मैंने इसपर अमल करना शुरू किया, तो अल्लाह ने मेरी इस परेशानी को दूर कर दिया।