सद्व्यवहार पर आधारित फ़िक़्ह

सद्व्यवहार पर आधारित फ़िक़्ह

1- "क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े गुनाहों के बारे में न बताऊँ?*" आपने यह बात तीन बार दोहराई। हमने कहा : अवश्य, ऐ अल्लाह के रसूल! तो आपने फ़रमाया : "अल्लाह का साझी बनाना और माता-पिता की बात न मानना।" यह कहते समय आप टेक लगाए हुए थे, लेकिन सीधे बैठ गए और फ़रमाया : "सुन लो, झूठी बात कहना (भी बड़ा गुनाह है)।" यह बात आप इतनी बार दोहराते रहे कि हमने कहा कि काश आप खामोश हो जाते।

3- "तुम लोग सात विनाशकारी वस्तुओं से बचो*।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! वह क्या-क्या हैं? आपने फ़रमाया : "अल्लाह का साझी बनाना, जादू, अल्लाह के हराम किए हुए प्राणी को औचित्य ना होने के बावजूद क़त्ल करना, ब्याज खाना, यतीम का माल खाना, युद्ध के मैदान से पीठ दिखाकर भागना और निर्दोष भोली-भाली मोमिन स्त्रियों पर व्यभिचार का आरोप लगाना।"

13- एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगा : मेरी सवारी हलाक हो चुकी है, अतः मुझे सवारी के लिए एक जानवर दीजिए। चुनांचे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "मेरे पास जानवर नहीं है।" यह सुन एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैं इसे एक व्यक्ति के बारे में बता सकता हूँ, जो इसे सवारी के लिए जानवर दे सकता है। इसपर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@जिसने किसी अच्छे काम का मार्ग दिखाया, उसे उसके करने वाले के बराबर प्रतिफल मिलेगा*।"

20- “सच्चाई को मज़बूती से थाम लो, क्योंकि सच्चाई नेकी (सुकर्म) की राह दिखाती है और नेकी जन्नत की ओर ले जाती है।* आदमी सर्वदा सत्य बोलता है तथा सत्य की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के निकट सत्यवादी लिख लिया जाता है। तुम झूठ बोलने से बचो, क्योंकि झूठ बुराई की ओर ले जाता है और बुराई जहन्नम की ओर ले जाती है। आदमी सदा झूठ बोलता रहता है तथा झूठ ही की खोज में लगा रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के यहाँ झूठा लिख लिया जाता है।”

32- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दो क़ब्रों के पास से गुज़रे, तो फ़रमाया : "@इन दोनों को यातना दी जा रही है, और वह भी यातना किसी बड़े पाप के कारण नहीं दी जा रही है। दोनों में से एक पेशाब से नहीं बचता था, और दूसरा लगाई- बुझाई करता फिरता था।*" फिर आपने एक ताज़ा शाखा ली, उसे आधा-आधा फाड़ा और हर एक क़ब्र में एक-एक भाग को गाड़ दिया। सहाबा ने पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! आपने ऐसा क्यों किया? तो आपने जवाब दिया : "शायद इन दोनों की यातना को उस समय तक के लिए हल्का कर दिया जाए, जब तक यह दोनों शाखाएँ सूख न जाएँ।"

55- "क्या तुम जानते हो कि निर्धन कौन है?*" सहाबा ने कहा : हमारे यहाँ निर्धन वह है, जिसके पास न दिरहम हो न सामान। आपने कहा : "मेरी उम्मत का निर्धन वह व्यक्ति है, जो क़यामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात के साथ आएगा, लेकिन इस अवस्था में उपस्थित होगा कि किसी को गाली दी होगी, किसी पर दुष्कर्म का आरोप लगा रखा होगा, किसी का रक्त बहा रखा होगा और किसी को मार रखा होगा। अतः उसकी कुछ नेकियाँ इसे दे दी जाएँगी और कुछ नेकियाँ उसे दे दी जाएँगी। फिर अगर उसके ऊपर जो अधिकार हैं, उनके भुगतान से पहले ही उसकी नेकियाँ समाप्त हो जाएँगी, तो हक़ वालों के गुनाह लेकर उसके ऊपर डाल दिए जाएँगे और फिर उसे आग में फेंक दिया जाएगा।"