सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह पर ईमान

सर्वशक्तिमान एवं महान अल्लाह पर ईमान

1- जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु का समय आया, तो आप अपनी एक चादर अपने चेहरे पर डालने लगे और जब उससे मुँह ढक जाने की वजह से दम घुटने लगता, तो उसे अपने चेहरे से हटा देते। इसी (बेचैनी की) हालत में आपने फ़रमाया : "@यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो, उन्होंने अपने नबियों की क़ब्रों को मस्जिद बना लिया।*" (वर्णनकर्ता कहते हैं कि) आप अपनी उम्मत को यहूदियों और ईसाइयों के अमल से सावधान कर रहे थे।

3- मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को मृत्यु से पाँच दिन पहले कहते सुना है : "@मैं अल्लाह के निकट इस बात से बरी होने का एलान करता हूँ कि तुममें से कोई मेरा 'ख़लील' (अनन्य मित्र) हो। क्योंकि अल्लाह ने जैसे इबराहीम को 'ख़लील' बनाया था, वैसे मुझे भी 'ख़लील' बना लिया है*। हाँ, अगर मैं अपनी उम्मत के किसी व्यक्ति को 'ख़लील' बनाता, तो अबू बक्र को बनाता। सुन लो, तुमसे पहले के लोग अपने नबियों की कब्रों को मस्जिद बना लिया करते थे। सुन लो, तुम कब्रों को मस्जिद न बनाना। मैं तुम्हें इससे मना करता हूँ।"

6- कहा गया कि ऐ अल्लाह के रसूल! क़यामत के दिन आपकी सिफ़ारिश से कौन ज़्यादा हिस्सा पायेगा, तो आपने फ़रमाया : "अबू हुरैरा! मेरा ख़्याल था कि तुमसे पहले कोई मुझसे यह बात नहीं पूछेगा, क्योंकि मैं देखता हूँ कि तुम्हें हदीस से बहुत लगाव है। @क़यामत के दिन मेरी सिफ़ारिश प्राप्त करने की सबसे बड़ी ख़ुश नसीबी उस व्यक्ति को हासिल होगी, जिसने अपने दिल या साफ़ नीयत से “ला इलाहा इल्लल्लाह” कहा हो।"

7- "जिसने इस बात की गवाही दी कि केवल अल्लाह ही सत्य पूज्य है, उसका कोई साझी नहीं है, एवं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे और उसके रसूल हैं, और ईसा भी अल्लाह के बंदे, उसके रसूल तथा उसका शब्द हैं, जिसे उसने मरयम की ओर डाला था और उसकी ओर से भेजी हुई आत्मा हैं, तथा जन्नत और जहन्नम सत्य हैं@, ऐसे व्यक्ति को अल्लाह जन्नत में दाख़िल करेगा, चाहे उसका अमल जैसा भी रहा हो।"

8- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बात कही है और मैंने एक बात कही है। अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है : "@जिस व्यक्ति की मृत्यु इस अवस्था में हुई कि वह किसी को अल्लाह का समकक्ष बनाकर पुकार रहा था, वह जहन्नम में प्रवेश करेगा।*" जबकि मैंने कहा है : जिस व्यक्ति की मृत्यु इस अवस्था में हुई कि उसने किसी को अल्लाह का समकक्ष बनाकर नहीं पुकारा, वह जन्नत में प्रवेश करेगा।

12- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने बरकत वाले और महान रब से रिवायत करते हैं कि उसने कहा है : "@ऐ मेरे बंदो! मैंने अत्याचार को अपने ऊपर हराम कर लिया है और उसे तुम्हारे बीच हराम किया है, अतः तुम एक-दूसरे पर अत्याचार न करो*। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग पथभ्रष्ट हो, सिवाय उसके जिसे में मार्ग दिखा दूँ, अतः मुझसे मार्गदर्शन मांगो करो, मैं तुम्हें सीधी राह दिखाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग भूखे हो, सिवाय उसके जिसे मैं खाना खिलाऊँ, अतः मुझसे भोजन माँगो, मैं तुम्हें खाने को दूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम सब लोग नंगे हो, सिवाय उसके जिसे मैं कपड़ा पहनाऊँ, अतः मुझसे पहनने को कपड़े माँगो, मैं तुम्हें पहनाऊँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम रात-दिन त्रुटियाँ करते हो और मैं तमाम गुनाहों को माफ़ करता हूँ, अतः मुझसे क्षमा माँगो, मैं तुम्हें क्षमा करूँगा। ऐ मेरे बंदो! तुम मुझे नुक़सान पहुँचाने के पात्र नहीं हो सकते कि मुझे नुक़सान पहुँचाओ और मुझे नफ़ा पहुँचाने के पात्र भी नहीं हो सकते कि मुझे नफ़ा पहुँचाओ। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे आज्ञाकारी इनसान के दिल पर जमा हो जाएँ, तो इससे मेरी बादशाहत में तनिक भी वृद्धि नहीं होगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा तुम्हारे इनसान और जिन्न तुम्हारे अंदर मौजूद सबसे पापी इंसान के दिल पर जमा हो जाएँ, तो भी इससे मेरी बादशाहत में कोई कमी नहीं आएगी। ऐ मेरे बंदो! अगर तुम्हारे पहले और बाद के लोग तथा इनसान और जिन्न एक ही मैदान में खड़े होकर मुझसे माँगें और मैं प्रत्येक को उसकी माँगी हुई वस्तु दे दूँ, तो ऐसा करने से मेरे ख़ज़ाने में उससे अधिक कमी नहीं होगी, जितना समुद्र में सूई डालकर निकालने से होती है। ऐ मेरे बंदो! यह तुम्हारे कर्म ही हैं, जिन्हें मैं गिनकर रखता हूँ और फिर तुम्हें उनका बदला भी देता हूँ। अतः, जो अच्छा पाए, वह अल्लाह की प्रशंसा करे और जो कुछ और पाए, वह केवल अपने आपको कोसे।"

22- कुछ लोगों ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से काहिनों (ओझों) के बारे में पूछा तो आपने फ़रमाया : "इन लोगों की बातों में कोई सच्चाई नहीं होती।" लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! यह लोग कभी-कभी ऐसी बात बताते हैं, जो सच हो जाया करती है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "@यह सच्ची बात वह होती है, जिसे जिन्न उचक लेता है और उसे अपने इंसान दोस्त के कान में ऐसी आवाज़ में डाल देता है, जो मुर्गी के कुड़कुड़ाने जैसी होती है, फिर यह लोग उसके साथ अपनी तरफ से सौ से अधिक झूठ मिला देते हैं।"

23- अल्लह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने, जबकि मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु सवारी पर आपके पीछे बैठे थे, फ़रमाया : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! मैंं उपस्थित हूँ। आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" उन्होंने दोबारा कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थि हूँ! आपने फिर कहा : "ऐ मुआज़ बिन जबल!" तो उन्होंने तीसरी बार कहा : ऐ अल्लाह के रसूल, मैं उपस्थित हूँ! तीसरी बार के बाद आपने फ़रमाया : "@जिस बंदे ने सच्चे दिल से यह गवाही दी कि अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बंदे तथा उसके रसूल हैं, अल्लाह उसे जहन्नम पर हराम कर देगा*।" उन्होंने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को आपकी यह बात बता न दूँ कि वे ख़ुश हो जाएँ? आपने फ़रमाया : "तब तो वे इसी पर भरोसा कर बैठेंगे।" चुनांचे मृत्यु के समय मुआज़ रज़ियल्लाहु अनहु ने गुनाह के भय से यह हदीस लोगों को बता दी।

26- उम्म-ए-सलमा रज़ियल्लाहु अनहा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास हबशा (इथियोपिया) में देखे हुए मारिया नामी एक गिरजाघर और उसके चित्रों का वर्णन किया, तो आपने कहा : "@वे ऐसे लोग हैं कि उन लोगों के अंदर जब कोई सदाचारी बंदा अथवा सदाचारी व्यक्ति मर जाता, तो उसकी कब्र के ऊपर मस्जिद बना लेते* और उसमें वो चित्र बना देते। वे अल्लाह के निकट सबसे बुरे लोग हैं।"

28- मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पीछे एक गधे पर बैठा हुआ था, जिसका नाम उफ़ैर था। इसी दौरान आपने कहा : "ऐ मुआज़! क्या तुम जानते हो कि बंदों पर अल्लाह का अधिकार क्या है और अल्लाह पर बंदों का अधिकार क्या है?" मैंने कहा : अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानते हैं। आपने कहा : "@बंदों पर अल्लाह का अधिकार यह है कि बंदे उसकी इबादत करें और किसी को उसका साझी न बनाएँ। जबकि अल्लाह पर बंदों का अधिकार यह है कि अल्लाह किसी ऐसे व्यक्ति को अज़ाब न दे, जो किसी को उसका साझी न ठहराता हो*।" मैंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! क्या मैं लोगों को यह सुसमाचार सुना न दूँ? आपने उत्तर दिया : "यह सुसमाचार लोगों को न सुनाओ, वरना लोग भरोसा करके बैठ जाएँगे।"

29- एक व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल! दो वाजिब करने वाली चीज़ें क्या हैं? आपने उत्तर दिया : "@जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी नहीं बनाया, वह जन्नत में प्रवेश करेगा और जो इस हाल में मरा कि किसी को अल्लाह का साझी बनाता रहा, वह जहन्नम में जाएगा।"

45- “निस्संदेह, अल्लाह पवित्र है और केवल पवित्र चीज़ों को ही स्वीकार करता है। अल्लाह ने ईमान वालों को वही आदेश दिया है, जो उसने रसूलों को दिया था।* अल्लाह ने फ़रमाया है : يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنْ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا [सूरा अल-मोमिनून : 51] (हे रसूलो! पवित्र चीज़ें खाओ और अच्छे कर्म करो।) और फ़रमाया है : يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ, [सूरा अल-बक़रा : 172] (हे ईमान वालो! हमने तुम्हें जो पवित्र चीज़ें दी हैं, उनमें से खाओ।) फिर एक व्यक्ति का उल्लेख किया, जो लंबी यात्रा करता है, जिसके बाल बिखरे हुए तथा शरीर धूल-धूसरित है, वह अपने हाथ आकाश की ओर उठाता है और कहता है : ‘हे मेरे रब! हे मेरे रब!’ जबकि उसका भोजन हराम का है, उसका पेय हराम का है, उसका वस्त्र हराम का है और उसका पोषण हराम से हुआ है, ऐसे में उसकी दुआ कैसे स्वीकार की जाएगी?”

47- मैंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फ़रमाते हुए सुना : “उच्च एवं बरकत वाला अल्लाह फरमाता है : @हे आदम के पुत्र! जब तक तू मुझे पुकारता रहेगा तथा मुझसे आशा रखेगा, मैं तेरे पापों को क्षमा करता रहूँगा, चाहे वह जितने भी हों, मैं उसकी परवाह नहीं करूँगा।* हे आदम के पुत्र! यदि तेरे पाप आकाश की ऊँचाइयों के समान हो जाएँ, फिर तू मुझसे क्षमा याचना करे, तो मैं तुझे क्षमा कर दूँगा और मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है।* हे आदम के पुत्र! यदि तू मेरे पास धरती के समान पाप लेकर इस हाल में आए कि तुमने मेरे साथ किसी को साझी नहीं किया था, तो मैं तेरे पास धरती के समान क्षमा लेकर आउँगा।"

48- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब हुनैन युद्ध के लिए निकले, तो मुश्रिकों (बहुदेववादियों) की ओर से पूजे जाने वाले एक पेड़ के पास से गुज़रे, जिसे 'ज़ात-ए-अनवात' कहा जाता था। वे उसमें अपने हथियार लटकाया करते थे। चुनांचे लोगों ने कहा : ऐ अल्लाह के रसूल! उनकी तरह हमारे लिए भी एक 'ज़ात-ए-अनवात' बना दीजिए। उनकी बात सुन अल्लाह के रसूलसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : सुबहानल्लाह (अल्लाह पवित्र है)! तुम लोग ठीक वैसा ही कह रहे हो, जैसा मूसा की क़ौम ने कहा था। उन्होंने मूसा (अलैहिस्सलाम) से कहा था : "اجْعَلْ لَنَا إِلَهًا كَمَا لَهُمْ آَلِهَةٌ" (हमारे लिए भी कोई पूज्य बना दीजिए, जैसा कि मुश्रिकों के बहुत-से पूज्य हैं।) [अल-आराफ़: 138] @सुन लो, तुम लोग भी पहले समुदायों के पदचिह्नों पर चल पड़ोगे।"

50- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे यहाँ आए, तो देखा कि मैंने अपने एक ताक पर एक कपड़ा डाल रखा था, जिसपर तस्वीरें थीं, उसपर नज़र पड़ते ही उसे खींचकर हटा डाला और आपके चेहरे का रंग बदल गया तथा फ़रमाया : "ऐ आइशा! @क़यामत के दिन सबसे अधिक कठोर यातना उन लोगों को होगी, जो अल्लाह की सृष्टि की समानता प्रकट करते हैं।*" आइशा रज़ियल्लाहु अनहा कहती हैं : अतः हमने उसे फाड़कर उससे एक या दो तकिए बना लिए।

53- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : "अल्लाह कहता है : @आदम की संतान ने मुझे झुठलाया, हालाँकि उसे ऐसा करने का हक नहीं था। मुझे गाली दी, हालाँकि ऐसा करने का उसे कोई अधिकार नहीं था*। उसका मुझे झुठलाना उसका यह कहना है कि उसने मुझे जिस प्रकार पहली बार पैदा किया है, उस प्रकार दोबारा पैदा नहीं करेगा, जबकि पहली बार पैदा करना मेरे लिए दूसरी बार पैदा करने से अधिक आसान नहीं था। उसका मुझे गाली देना,उसका यह कहना है कि अल्लाह ने पुत्र बना लिया है, हालाँकि मैं एक हुं तथा तमाम संपूर्ण गुणों में सम्पूर्णता से वेशेषित हूँ, न मैंने जना है और न ही जना गया हूँ और कोई मेरी बराबरी का नहीं है।"

57- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "अल्लाह कहता है : @जो मेरे किसी वली (मित्र) से शत्रुता का रास्ता अपनाएगा, मैं उसके साथ जंग का एलान करता हूँ। मेरा बंदा जिन कामों के द्वारा मेरी निकटता प्राप्त करना चाहता है, उनमें मेरे निकट सबसे प्यारी चीज़ मेरे फ़र्ज़ किए हुए काम हैं*। जबकि मेरा बंदा नफ़्लों के माध्यम से मुझसे निकटता प्राप्त करता जाता है, यहाँ तक कि मैं उससे मोहब्बत करने लगता हूँ और जब मैं उससे मोहब्बत करता हूँ, तो उसका कान बन जाता हूँ, जिससे वह सुनता है; उसकी आँख बन जाता हूँ, जिससे वह देखता है; उसका हाथ बन जाता हूँ, जिससे वह पकड़ता है और उसका पाँव बन जाता हूँ, जिससे वह चलता है। अब अगर वह मुझसे माँगता है, तो मैं उसे देता हूँ और अगर मुझसे पनाह माँगता है, तो मैं उसे पनाह देता हूँ। मुझे किसी काम में, जिसे मैं करना चाहता हूँ, उतना संकोच नहीं होता, जितना अपने मोमिन बंदे की जान निकालने में होता हैम, जब कि वह मौत को नापसंद करता हो और मुझे भी उसे तकलीफ देना अच्छा नहीं लगता।"

60- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास दस लोगों का एक गिरूह आया, जिनमें से नौ लोगों से आपने बैअत ली, जबकि एक व्यक्ति से बैअत नहीं ली, अतः उन्होंने पूछा : ऐ अल्लाह के रसूल! आपने नौ लोगों से बैअत ली और एक व्यक्ति से बैअत नहीं ली! आपने उत्तर दिया : "उसने तावीज़ बाँध रखा है।" अतः उस व्यक्ति ने अपना हाथ अंदर डाला और उसे काट दिया। तब जाकर आपने उससे बैअत ली और फ़रमाया : @ "जिसने तावीज़ लटकाया, उसने शिर्क किया।"

82- एकि व्यक्ति अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के पास आया और कहने लगा : ऐ अल्लाह के रसूल! हम में से एक व्यक्ति अपने दिल में ऐसी बातें पाता है (वह इशारे में बात कर रहा था) कि कोयला बन जाना उनको बोलने से अधिक प्रिय लगता है। यह सुन अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह सबसे बड़ा है। @सारी प्रशंसा अल्लाह की है, जिसने शैतान के फ़रेब को बुरे ख़याल की ओर फेर दिया।"

84- "अल्लाह किसी मोमिन के द्वारा किए गए किसी अच्छे काम के महत्व को घटाता नहीं है। मोमिन को उसके अच्छे काम के बदले में दुनिया में नेमतें प्रदान की जाती हैं और आख़िरत में प्रतिफल दिया जाता है*। जबकि काफ़िर को उसके द्वारा अल्लाह के लिए किए गए अच्छे कामों के बदले में दुनिया में आजीविका प्रदान कर दी जाती है, यहाँ तक कि जब वह आख़िरत की ओर प्रस्थान करता है, उसके पास कोई अच्छा काम नहीं होता, जिसका उसे बदला दिया जाए।"

86- एक बार हम मस्जिद में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे हुए थे कि इतने में ऊँट पर सवार होकर एक व्यक्ति आया और अपने ऊँट को मस्जिद में बिठाकर बाँध दिया, फिर पूछने लगा कि तुममें से मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) कौन हैं ? अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस समय सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच टेक लगाकर बैठे हुए थे । हमने कहा : यह सफ़ेद रंग वाले व्यक्ति जो टेक लगाकर बैठे हुए हैं, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तब वह आपसे कहने लगा : ऐ अब्दुल मुत्तलिब के बेटे! इसपर आपने फ़रमाया : जो कहना है, कहो! मैं तुझे जवाब देता हूँ। फिर उस आदमी ने आपसे कहा कि मैं आपसे कुछ पूछने वाला हूँ और पूछने में सख़्ती से काम लूँगा। आप दिल में मुझपर नाराज़ ना हों। यह सुन आपने फ़रमाया : कोई बात नहीं जो पूछना है, पूछो।तो उसने कहा कि मैं आपको आपके रब और आपसे पहले वाले लोगों के रब की क़सम देकर पूछता हूँ, क्या अल्लाह ने आपको तमाम इन्सानों की तरफ़ नबी बनाकर भेजा है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। फिर उसने कहा : आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ क्या अल्लाह ने आपको दिन रात में पाँच नमाज़ें पढ़ने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है फिर उसने कहा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने साल भर में रमज़ान के रोज़े रखने का आदेश दिया है? आपने फ़रमाया : हाँ, अल्लाह गवाह है। फिर कहने लगा : मैं आपको अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूँ कि क्या अल्लाह ने आपको आदेश दिया है कि आप हमारे मालदारों से सदक़ा लेकर हमारे निर्धनों में बांट दें? आपने फ़रमाया : हाँ अल्लाह गवाह है। उसके बाद वह आदमी कहने लगा : मैं उस (शरीयत) पर ईमान लाता हूँ, जो आप लाए हैं। मैं अपनी क़ौम का प्रतिनिधि बनकर आपकी सेवा में उपस्थित हुआ हूँ, मेरा नाम ज़िमाम बिन सालबा है@ और मैं साद बिन अबी बक्र नामी क़बीले से ताल्लुक़ रखता हूँ।

87- अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अनहु ने हमें बताया कि एक व्यक्ति ने कहा : ऐ अल्लाह के नबी! काफ़िर को चेहरे के बल कैसे एकत्र किया जाएगा? आपने उत्तर दिया : "@जिसने उसे दुनिया में पैरों पर चलाया, क्या वह क़यामत के दिन उसे चेहरे के बल चला नहीं सकता?*" क़तादा कहते हैं : अवश्य चला सकता है, हमारे रब की प्रतिष्ठा की क़सम।